तूझसे मिले हुए तो एक अरसा हो चुका है,
रूह तो आज भी कांपती है मेरी,
वो आखरी दिन, ज़ेहन में बस सा गया है।
कभी वो तेरी बाहों की गर्माहट याद आती है,
तो कभी वो मजबूत कंधे,
कभी तू मुस्कुराता नज़र आता है
तो कभी वो आखरी दिन के आंसू।
मैं याद तो करती हूं तुझे
पर तुझे याद करने का समय नहीं।
मैं चलते रहना चाहती हूं,
पर तुझसे बिछड़ने का दिल करता ही नहीं।
हर रोज़ मेरी नींद तू अपने साथ ले जाता है,
हर सुबह, सूजी आंखे मेरी
तुझे तलाशते हुए नम हो जाती हैं,
मैं कहती हूं इस ज़ेहन से, तू जा चुका है।
ये मानते ही नहीं की हर रात का चौकना
तेरे ना होने के वजह से होता है!
मैं कहूं भी तो क्या, महसूस तो तुझे आज भी करती हूं
पर दुनिया को कहना पड़ता है,
महसूस अब कुछ होता ही नहीं।
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