Astha Khantwal   (आस्था)
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Joined 2 July 2019


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5 JUN 2022 AT 8:28

सांसें हमारी उनसे हैं,
वो हर बगिया को महकाते हैं।
पर्वत, वन, फ़ूल, वृक्ष,
सब वो ही तो हैं;
जो मिलकर इस प्रकृति को बनाते हैं।।

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8 MAY 2022 AT 8:35

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8 MAR 2022 AT 7:02

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8 FEB 2022 AT 22:07

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4 FEB 2022 AT 21:39

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17 JAN 2022 AT 18:25

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28 DEC 2021 AT 21:08

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15 OCT 2021 AT 20:24

जीत ज़रूरी है?
या,
फिर हार ज़रूरी?
प्रश्न कुछ वैसा ही है,
जैसे,
राम ज़रूरी या रावण ज़रूरी?
और सोचें,
तो,
पंडित ज़रूरी या पांडित्य ज़रूरी?
स्नेह ज़रूरी या फिर त्याग ज़रूरी?
परिवार ज़रूरी या स्वहित ज़रूरी?
धुंध ज़रूरी या धूप ज़रूरी?
थोड़ा सा और सोचें तो,
बिना किसी ज़रूरत के ही,
सब कुछ ज़रूरी है।।

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19 SEP 2021 AT 22:10

वक्त तेरा है, जीत तेरी।

तू बस यूं ही चलता रह।

रुक मत, झुक मत,

सबकी शान है तू,

हिम्मत से आगे बढ़ता रह।।

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19 SEP 2021 AT 21:57

क्या चापलूसी करते करते तुम थकते नहीं?

हम तो जल्दी ही थक जाते हैं,

अपनी ही बातें मान - मान कर।।

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