आओं सुनाऊ तुम्हे बीतें हुए पलो की
कुछ ख़ट्टी, कुछ मीठीं दास्ता,
कुछ मेरीं, कुछ आपक़ी बात करते हैं
चलों कुछ बीतें हुए लम्हें याद करते हैं,
ज़ब हम आये थे यहा तो ये एक़ गुमनाम पहेली थीं
आज यहां पर सब अपने से लगने लगे है,
कई बार देर से आने पर तरह-तरह के बहानें भी बनाएं
सिस्टम और चेयर के लिए आपस में कई बार लड़ें है,
आज वक्त को रोकने का जी चाह रहा है
न जाने क्यू छुट जाने से डर लग रहा है,
सूरज की पहली किरण से थी शुरुआत हमारी
अब तो यह भी नहीं पता आगे का समा पाएंगे या नहीं पाएंगे,
याद आएगा हमें ये पल
वो हर मुस्किलों में साथ देना,
मैम के लेक्चर को प्यार से समझाना
सीनीयर के आगे ड़ाट खाने से बचाना,
ये सब साथ तो रहेंगे पर याद तो जरूर आयेंगे
आओं सुनाऊ तुम्हे बीतें हुए पलो की,
कुछ ख़ट्टी, कुछ मीठीं दास्ता..
जाना...
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