जब हर कलम जज्बात हो , लिखने में शामो रात हो ,
कूच हो जो दिख सके , हर सुर में जिसको पढ़ सके ,
भाषा न जिसको रोकती , कुर्सी न जिसको टोकती ,
हर सुबह का ध्यान हो , शुक्र की अजान हो ,
जो प्रेम सबमें बाट दे , दर्द को पहचान दे ,
जहाँ भेद ना हो भाव का , जहाँ चीख ना हो चाह का ,
ऐसा लिखो की सह सको , सह के सबको सुन सको ,
फिर लिखना बड़े चाव से , पंक्तियाँ हिसाब से ,
तब कहना जज्बात था , लिखने में शामों रात था ।
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