Ashish Prasad Soni   (Dr. Ashish एहसास🌹)
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नग़मों को बयां करता हक़ीक़त है जो लिखा करता ...☺️
Joined 31 October 2019


नग़मों को बयां करता हक़ीक़त है जो लिखा करता ...☺️
Joined 31 October 2019
29 APR AT 21:38

जीवन का गणित...
दो पहिये की है जिंदगी.....
तू बाएं मैं दायें जिंदगी.....
दो पहिये की बनी ये गाड़ी....
मैं ईंधन भरता हूँ इसमें.....
जीवन की है ये गाड़ी.....
साथ चला पड़ाव थे इतने...
रुक रुक फिर साथ चले थे......
दो से फिर अब तीन बने थे....
जीवन का रीत रचे थे....

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29 APR AT 21:18

जीवन का है क्या गणित समझ नहीं है आता...
आया एक अकेला परिंदा साथ मिला दोबारा....
उड़ता-उड़ा घरौंदा न मिलता राह दोबारा तकता...
जाने कैसी राह दिख रही मिला न साथ तुम्हारा....
एक मिला और एक रह गया कैसा गणित तुम्हारा...
दो पंखों से ही उड़कर देखो अम्बर आज हमारा....

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27 MAR AT 15:47

ख्वाइशें कहाँ पूरी हो पाती है....
अक्सर धुंधली पड़ जाती है.....
ख्वाइशें कहाँ अपनी हो पाती है...
ख़्वाबों में धूल ऐसी पड़ सी गई हैं....
ख्वाइशें अब दिख भी नही पाती है....
ख्वाइशें कहाँ पूरी हो पाती है....

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6 MAR AT 9:40

शूल पड़ी है दिल मे ऐसे....
प्यार कहाँ से लाऊँ....
अंगार पड़े है राह में ऐसे....
जिक्र कही न कर मैं पाऊ....
अब आई है जिक्र ये ऐसी....
शाम तक कैसे रह पाऊ...
शूल पड़ी है दिल मे ऐसे....
दर्द ये मैं कैसे बतलाऊ....
राह नही रोशन वो करता....
अब किरण कहाँ से लाऊँ....
लौ देखी दूर तलक से....
पैगाम कहाँ से लाऊँ...
अब वो इंसान कहाँ से लाऊँ

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5 MAR AT 17:41

यादों की दोपहर में...
सकूँ का इंतजार ऐसा...
मिले दरम्यान ऐसे...
सफर चल रहा जैसे...
ख्वाबों की छाव में....
आँचल की ओट लेकर...
ख़्वाब को यू सँजो कर...
कोई मिल रहा ऐसा....
छाव हो मेरी जैसे....
सकूँ की बात कही जैसे...

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26 FEB AT 19:06

परखते-परखते जमाना निकल गया.
जो कोई भी था अपना...पराया बन गया...
परख की आँच पर किसी ने..
ख़्वाबों को चढ़ा रक्खा था...
ख्वाइशों की तपिश में... खुद को जला रहा था...
अब सब्र की सियाही को तपा रहा था...
लिख-लिख कर पयाम भेज रहा था....
न थी खबर उसे नज़्म लिख रहा था..

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15 FEB AT 11:12

कोई कमा रहा धन इस कदर...
उसे कदर नही औरो की...
रिस्तो को भी ताक रख रहा....
अब कीमत क्या रही अपनों की...
सम से समता और सम्मन खरीद रहा...
मोल लगा रहा सपनों की ......

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14 FEB AT 12:20

गिरकर मैं कितने टुकड़ो में बंट गया हूँ.....
चुन-चुन कर खुद को गढ़ रहा हूँ.....
एक-एक हिस्सों में दबी थी ख़ामोशी इस तरह....
ख़ामोश रह कर भी इबादतें कर रहा हूँ.....
बिखरकर कियु ऐसे सिमट से रहा हूँ.....
खुद को कियु गढ़ रहा हूँ , खुद को कियु गढ़ रहा हूँ ...
ख़ामोश रहकर भी कियु अब ये कह रहा हूँ...

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12 FEB AT 23:30

देख गगन की ओर इशारा....
करता कोई आज बेचारा....
तारों की सरगम में ऐसा....
देख रहा वो चांद हमारा....
आंखों में सपनों को भरकर....
देख रहा वो गगन दुबारा....
कितनी वो ख्वाइशें बुनरहा....
आज किसी का राज दुलारा....
अपने चाँद से मिल रही चाँदनी....
ख्वाबों का जैसे मिल जाना....
एक हो रहा गगन दुबारा....
करता रहता इस ओर इशारा...

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9 FEB AT 20:04

इत्तला दू या इम्तिहाँ लूँ....
बेसब्र निगाहों को कैसे दवा दूँ....
आकर जो गुम सा हो गया है...
उसे अब इस मर्ज की क्या दवा दूँ....
जब मर्ज भी तू और दवा भी तू...
साहब अब मैं दवा कियु दूँ...

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