ताउम्र का सफर है, ताउम्र लड़खड़ाना है, ना जीत पे जश़न कर, ना हार से घबराना है, मंजिल कितनों को मिली, कोई ठहरा नहीं वहां पर, बस, चूमना है पाला और आगे निकल जाना है।।
सजदे में सिर झुकाने को इक शख्स काफी है, आशिकों की हो कतार ये चाहत नहीं है मेरी, ना करके कुछ के ख्वाब शायद तोड़े होंगे मैंने, हां कर दिलों से खेलने की आदत नहीं है मेरी।।