फागुन की पाय फगुनाहट हुलास भरी
रंग-रंग बूड़े-बूड़े आज हाट-बाट हैं
उछले उछाह भरे उमगे तरंग भली
गंगा मैयाजी के दूनों पाट के भी ठाठ हैं
भाँग औ' धतूरा के बौराए दूनों एक भये
को हैं डोम राजा मोरे कौन बिसनाथ हैं
भसम रमाय अंग-अंग महादेव लखो
होरिया के दिन मनिकनिका के घाट हैं
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