ये जो आजकल हम इतना कमाने लगे हैं ।
हमें यहाँ तक पहुँचने में जमाने लगे हैं ।
हुए क्या बामुराद ज़रा से आजकल हम ,
वे अपना सर हमारे कमर तक झुकाने लगे हैं ।
हो गए हैं कितने अधिक शातिर नयन हमारे,
कमबख्त ये तो सबकी नजरें चुराने लगे हैं ।
चाहिए होंगे दो- चार मुखौटे चेहरे पे कोई ,
चूँकि ये सारे राज दूसरों को बताने लगे हैं ।
अब नहीं माँगना इमदाद अजीजों से भी,
अब तो वे भी हमपर एहसान जताने लगे हैं ।
न देखी होंगी तकलीफें उनने वालिदों की ,
इसलिए औलादें माँ-बाप को सताने लगे हैं ।
हो गया दिखना बंद अब जब आँखों से ,
अब बेआँख वे सबको राह दिखाने लगे हैं ।
~Arvind
-