कृत्रिम हो या शाश्वत हो,
सृष्टि निमित्त आश्वस्त जो।
हो शुद्ध प्रबुद्ध विवेकशील
वो वर्ण कहाँ से लाऊँ।
जो करे निछावर सबकुछ
ऐसा कर्ण कहाँ से लाऊँ।।
ख्वाबों को संपादित कर दे,
उम्मीदें सब अर्जित कर दे,
जो तपे अग्नि में अविरत,
ऐसा स्वर्ण कहाँ से लाऊँ।
जो करे निछावर------
जो गौरव का न गणित करे,
हर आशा को भी फलित करे,
जो दे विशिष्ट हर एक छवि
वो दर्पण कहाँ से लाऊँ।
जो करे निछावर------
आत्मिकता से जो ग्रसित रहे,
अध्यात्मपूर्ति जो त्वरित रहे,
जो निमित्त हो दायित्व हेतु,
कहो? अर्पण कहाँ से लाऊँ।
जो करे निछावर सबकुछ,
ऐसा कर्ण कहाँ से लाऊँ।।
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