Arun sharma   (अरुण शर्मा)
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Joined 6 April 2018


Joined 6 April 2018
14 AUG 2022 AT 1:28

किसी  को  लूट  लेते  हैं,   किसी  से  टूट  जाते  हैं।
ये  रिश्ता  अजनबी  है  पर  सभी  से  जूट जाते हैं।
शिकायत भी करें किससे, बगावत भी करें किससे-
जिसे   हम  चाहते  वो  राह  अक्सर  छूट  जाते  हैं।

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13 AUG 2022 AT 15:36

किसी  के  दिल  में रहने  को बहाना ढूँढ लेते हम।
परखना  और  उसको  आजमाना  ढूँढ  लेते  हम।
कभी अपनी कहीं कहते नहीं क्या  राज हैं  उनके-
मगर  चेहरे  में  उनके  हर  खजाना  ढूँढ  लेते हम।
अरुण शर्मा

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26 NOV 2021 AT 12:57

कब तक मौन रहोगे बोलो, इन कश्मीरी वादी में।
तिनका-तिनका बिखर गया है,भारत की आजादी में।।
स्वर्ग कभी था नर्क बनाकर किसको तुम आबाद किये।
अपने ही सब काटे बाँटे , खुद को ही बर्बाद किये।
लूट रहे हैं तुझको अपने जाति-धर्म की खादी में।।
जो तेरे अपने हैं उनसे क्यों तू दूरी पाल रहा।
मातृभूमि पर मर-मिटने को जज्बे स्वयं सम्हाल रहा।
साथ न देना उन्हें कभी तुम जो तेरे बर्बादी में।।
इस धरती का स्वर्ग तुम्हारे रहते क्यों बदहाल हुआ।
घर के बेटे गैर हो गए गैर यहाँ खुशहाल हुआ।
कबतक खड़े रहोगे आखिर, छोड़ हमें अपवादी में।।
अरुण शर्मा
भिवंडी

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12 SEP 2021 AT 23:27


जीवन  में  यदि  हर्ष  न  हो तो क्या होगा!
खुशियों के कुछ वर्ष न हो तो क्या होगा!!
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अपने  ही  जब जंग  में  शामिल हो जायें
उनसे  फिर  संघर्ष  न  हो  तो क्या होगा!
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बाँट  रहें  कुछ   लोग  वाह- वाही  झूठी
उनसे  फिर आमर्ष  न हो  तो क्या होगा!
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अस्तित्व  हेतु अनबन  चलती सदियों से
यदि व्यवहार्य सहर्ष न हो तो क्या होगा!
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दबा  रहें  जो  पैर  तले  ही  अपनों  को
उनका फिर उत्कर्ष न हो तो क्या होगा!
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जीवन है, जीवन  भर  लड़ना है सबको
अरुणअगर निष्कर्ष न हो तो क्या होगा!

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11 SEP 2021 AT 17:37


कृत्रिम हो या शाश्वत हो,
सृष्टि निमित्त आश्वस्त जो।
हो शुद्ध प्रबुद्ध विवेकशील
वो वर्ण कहाँ से लाऊँ।
जो करे निछावर सबकुछ
ऐसा कर्ण कहाँ से लाऊँ।।
ख्वाबों को संपादित कर दे,
उम्मीदें सब अर्जित कर दे,
जो तपे अग्नि में अविरत,
ऐसा स्वर्ण कहाँ से लाऊँ।
जो करे निछावर------
जो गौरव का न गणित करे,
हर आशा को भी फलित करे,
जो दे विशिष्ट हर एक छवि
वो दर्पण कहाँ से लाऊँ।
जो करे निछावर------
आत्मिकता से जो ग्रसित रहे,
अध्यात्मपूर्ति जो त्वरित रहे,
जो निमित्त हो दायित्व हेतु,
कहो? अर्पण कहाँ से लाऊँ।
जो करे निछावर सबकुछ,
ऐसा कर्ण कहाँ से लाऊँ।।

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10 SEP 2021 AT 12:04

अपनी जिम्मेदारी रोज निभाता दर्पण।
भेद हृदय का कहाँ कभी बतलाता दर्पण।
अंतर का छल-छद्म कहाँ उसको दिखते हैं-
ऊपर ऊपर सत्य सदा दिखलाता दर्पण।

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10 SEP 2021 AT 0:03

हरतालिका तीज मिले, बहनों को आशीष।
रहे  सुहागन  सर्वदा,  कृपा  करे  अंबरीष।।

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8 SEP 2021 AT 22:55

बदल  रहा  है  देश,  बदलना सबको होगा।
सबके सब अवधेश, बदलना सबको होगा।
फैल  रहा  है भ्रांत, शांत  होकर सोचो तुम-
अनुकूल न परिवेश, बदलना सबको होगा।

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8 SEP 2021 AT 22:31

किसे सुनायें,कौन सुनेगा, मेरे मन की पीर
कभी तो बदलेगी तस्वीर।।
आबंटन तो खूब हुआ है
धन-संपत्ति, शऊर।
पर मिलता कब किसको प्यारे
बँटता रोज जरूर।
आसमान में हाँड़ी लटके,नीचे अग्नि हकीर।
उत्साहित हृदय ने चुना है
लोकतंत्र भूदेव।
कहाँ मिलेगा ऐसा कोई
जो हो देश स्वमेव।
डरा-डराकर लूट रहें कह,चोर तुम्हारा मीर।।
औकातों में अंतर कितना
जान रहा है तंत्र।
सिर्फ दिखावे की मुट्ठी पर
फूंक रहे सब मंत्र।
आड़े-तिरछे चाल चले क्या,प्यादा हुआ वज़ीर।।
लोकतंत्र में कमी यही इक
सबको कुर्सी भूख।
आना-जाना रत्तीभर पर
सबका हृदय रसूख़।
जो प्रेमी हैं इस धरती के,कहते स्वयं फकीर।

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7 SEP 2021 AT 23:44

न पूछो तुम कभी मुझसे,पुरानी पीर की बातें।
न राधा की, न मीरा की,न शीरीं हीर की बातें।
सभी को जानते हैं सब कवायद हर जमाने में-
मगर करता नहीं कोई किसी तदबीर की बातें।

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