𝓐𝓻𝓾𝓷 𝓖𝓪𝓾𝓻   (𝓡𝓪𝓭𝓱𝓮𝓴𝓻𝓲𝓼𝓱𝓷𝓪)
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Joined 7 October 2019


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Joined 7 October 2019

क़भी मन ठहरने को करता है,,
क़भी चलते चले जाना चाहता है।।

क़भी एक पल सुकून की तलाश करता है,,
कभी खुद के अंदर का शोर सुनना चाहता है।

कभी खुद की ख़ोज में निकलता है,,
क़भी भीड़ में गुम हो जाना चाहता है।।

मन ही तो है,,
बस ये दो पल मुस्कुराना चाहता है।।


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ग़र तपन हो धूप में..
तो सूरज का चमकना ज़रुरी थोड़ी है।।

ग़र टूटा हो मकां..
तो बारिश में मजे लेना ज़रूरी थोड़ी है।।

ग़र गिर गए हों पत्ते शाख़ से..
तो शाख़ को काट देना ज़रूरी थोड़ी है।।

ग़र आराम मिल जाये नींद में..
तो बिस्तर का होना ज़रूरी थोड़ी है।।

ग़र खुशियाँ मिल जायें कच्चे घर में..
तो ईंटों का महल होना ज़रूरी थोड़ी है।।

ग़र बहुत कुछ हो सुनाने को..
तो हर किस्सा सुना देना ज़रूरी थोड़ी है।।

ग़र ज़ख्म हो गहरे..
तो मरहम से भर जाना ज़रूरी थोड़ी है।।

ग़र सुकून न मिले कहीं पर..
तो हर ज़गह रुक जाना ज़रूरी थोड़ी है।।

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......चाहता हूँ।।

[Full read in caption 👇👇]

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कई क़यास लगा लेते हैं लोग अक्सर उसकी ख़ामोशी देखकर..
पर न जाने क्यूँ कोई उसकी ख़ामोशी के पीछे का शोर नहीं सुनता।।

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एक अलग ही गुफ़्तगू होती है मेरी मुझसे..
क़भी सवालों को ढूँढता रह जाता हूँ।।
क़भी-क़भी जवाबों में उलझ सा जाता हूँ।।

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एक अजीब सी कश्मकश में हूँ।
कि मैं कौन हूँ ??
और क्या हूँ..??

कभी-नदी की शांत धारा सा मैं,,
कभी-कभी समुन्दर के उफान सा हूँ।।

कभी बर्फ के पहाड़ सा मैं,,
कभी-क़भी दरख्ति चट्टान सा हूँ।।

क़भी बसंत के सुहावने दिन सा मैं,,
क़भी-क़भी सर्द की ठिठुरती रात सा हूँ।।

क़भी सुकून भरी नींद सा मैं,,
क़भी-क़भी एक अधूरा ख़्वाब सा हूँ।।


क़भी ख़ामोश सी रात सा मैं,,
क़भी-क़भी शोर भरे दिन सा हूँ।।

क़भी कहानियों की किताब सा मैं,,
क़भी-क़भी क़लम की टूटी नोंक सा हूँ।।

एक अजीब सी कश्मकश में हूँ।
कि मैं कौन हूँ ??
और क्या हूँ??

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वो उलझ तो जाता है..
लोगों की भीड़ में अक़्सर,,
पर सुलझना कैसे है..?
ये वो नहीं जानता।।
वक़्त के साथ बदल ही जाते हैं..
लोग अक़्सर,,
पर वक़्त के साथ बदलना कैसे है..?
ये उसे नहीं आता।।
नज़र अंदाज़ करना सीख ही लेते हैं..
लोग अक़्सर,,
पर नजरअंदाज करते कैसे हैं..?
ये वो समझ नहीं पाता।।
कहते तो सब हैं कि..
वक़्त के साथ सब ठीक हो जाएगा,,
पर कब ठीक होगा..
ये कोई क्यूँ नहीं बताता?


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कभी-कभी भरे उजाले में मिल जाता है,,
एक जुगनू भी,,
कभी-कभी अंधेरों में एक सितारा भी,,
गुमनाम हो जाता है।।

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कहाँ गए वो दिन,,
कोई तो बता दे।।
(𝙁𝙐𝙇𝙇 𝙍𝙀𝘼𝘿 𝙄𝙉 𝘾𝘼𝙋𝙏𝙄𝙊𝙉👇👇)

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...... सीख लिया।।
(𝙁𝙪𝙡𝙡 𝙧𝙚𝙖𝙙 𝙞𝙣 𝙘𝙖𝙥𝙩𝙞𝙤𝙣👇👇)

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