उठा के बस्ता
लेकर चेहरा हंसता...
घर से चले पाने को
अपनी ख्वाहिशों का रस्ता..
पर पता न था कि होता नहीं
जहां में कुछ भी सस्ता...
पर ठान लिया, मंजिल को सबकुछ मान लिया
और पा लिया मुकाम आहिस्ता-आहिस्ता...
पर बैठ जरा फुर्सत में, खोला जब
वही पुराना बस्ता...
तो पाया कि है कोई
जो इस बीच बहुत कुछ सह गया
मेरा घर अकेला रह गया.....😞
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