वो लड़कीयाँ जब अपने हाथों से कसकर बाँध लेती है "जूड़ा" साथ-साथ अपने जूड़े में कैद कर लेती है घूरती नज़रों को, घर की मर्यादा, अपना स्वाभिमान, आत्मसम्मान, उपहास का डर, चार लोगों की बातें, संसार का सारा प्रेम, स्नेह, क्षमा क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, विवशता ओर सहनशीलता!! सृष्टि का समस्त सृजन, प्रकृति के सौंदर्य, रातभर के सपनें और दिनभर की कल्पनाएं, फिर निकल जाती है घर से अव्यवस्थित समाज को व्यवस्थित करने के लिए।