आज फिर कोई आवाज़ सुनाई देती है,
आज फिर कोई अक्स हस रहा दिखाई देता है।
हस रहा होता है वो हमारी हस्ती पर,
हस रहा होता है वो हमारी लड़ कर बसाई बस्ती पर।
हस रहा होता है वो देख हमारी हरकत पर,
हस रहा होता है वो देख हुक्मरानों की बरकत पर।
अशफ़ाक-बिस्मिल ने जान लुटाई जिस पिंजरे को तोड़ने में,
आज अशफ़ाक-बिस्मिल को ही बाट दिया उसी पिंजरे को जोड़ने में।
आज हस रहे हैं वो जिनसे सरदार भगत लड़े,
हस रहे हैं वो जिनसे आज़ाद, बोस लड़े।
हस रहे हैं वो कि जो बीज उन्ने बोया था,
उसी बीज की फसल कोई और आज है काट रहा।
हस रहे हैं सब हमें धर्मों के नाम पे लड़ता देख कर,
हस रहे हैं सब हमें वर्गों के नाम पे लड़ता देख कर।
आज फिर कोई आवाज़ सुनाई देती है,
आज फिर कोई अक्स हस रहा दिखाई देता है।
हस रहा होता है वो हमारी हस्ती पर,
हस रहा होता है वो हमारी लड़ कर बसाई बस्ती पर।
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