"ठहराव एक सुकून"
दौड़ तो हम सब रहे है,
लेकिन आपके इस ठहराव भरे लहज़े ने
मुझे ज़िन्दगी जीना सीखा दिया।
मैं हमैशा सोचती थी,
क्या सच में ये ठहराव भीतर से आनंदित रखता है,
आपको देख के मुझे मेरे सारे सवालों के जवाब मिल गये।
समझ आ गया की,
वो जो दूसरों को उठाने की कोशिश करते है,
वाकई में कमाल का व्यक्तित्व रखते है।
मुझे ज़िन्दगी से कभी कोई शिकायत तो नहीं थी
लेकिन उलझनों में इतना उलझी पड़ी थी,
की रोशन-सी राहों में भी अँधेरे नज़र आते थे।
हमैशा एक डर सा रहता था मन में,
पता नहीं क्यूँ
लेकिन जीवन का कोई लक्ष ही नही था।
आप ने तो आके
मेरे मन की गुत्थियों को ऐसे सुलझा दिया,
जैसे एक पिता अपनी बेटी को
सही राह पर चलना सिखाता है।
सच मे जब कोई अपना हाथ आगे बढ़ाता है,
तो डर नहीं उम्मीद पनपती है..
एक नये विश्वास का जन्म होता है,
की ज़िन्दगी का अगला पड़ाव जो भी होगा
बस दिलचस्प होगा।......
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