Aparna Mishra   (Aparna Mishra)
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~हमारी ग़ज़लों को हमारा हुनर समझिए
दिल टूटा होता तो क़यामत लाते हम 🌈
Joined 11 April 2021


~हमारी ग़ज़लों को हमारा हुनर समझिए
दिल टूटा होता तो क़यामत लाते हम 🌈
Joined 11 April 2021
12 NOV 2022 AT 19:53

ना रही जान बाकी तेरी फ़ुर्क़त में
याद भी तेरी आती है अब फ़ुर्सत में

मोहब्बत का हुस्न से वास्ता नहीं
तुम्हें छू भी ना सके हम क़ुर्बत में

बेपनाह चाहत और क्या ही मांगे
आशिक फ़ना होके पड़े है तुर्बत में

हम जो शायर क्या हो गए के
सिर्फ़ ग़म मांगते है बरकत में

तुझे देखने के बाद ऐसा लगता है
कोई और रहता है मेरी हरकत में

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11 NOV 2022 AT 13:05

ना रही जान बाकी
तेरी फ़ुर्क़त में

याद भी तेरी आती है
अब फ़ुर्सत में

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8 NOV 2022 AT 22:02

तुम्हें देख लूं तो नींद नही आती
जो ना देखूं तो चैन नही पड़ता

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5 NOV 2022 AT 19:25

क्या नही उलझता
तेरी आंखों में देखकर


कभी दिल संभाले है
कभी गेसू संभाले है

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28 APR 2022 AT 22:55

दर्द पे काबू अभी मुश्किल है
ये जो ज़ख़्म है वो कल के हैं

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23 APR 2022 AT 23:07

मैंने तो बस फ़ासला बढ़ाया था
तुमने तो दूरियां बढ़ा ली

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21 APR 2022 AT 23:55

नया इश्क़ है झूठी कसमें
वादों से फिर मुकर जायेंगे

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20 APR 2022 AT 13:34

उसके सिवा किधर जायेंगे
हम तन्हा यूँ गुज़र जायेंगे

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18 APR 2022 AT 13:07

जुदा-जुदा से रहते है अब
अश्क़ पलकों से ख़फ़ा रहते हैं अब

हम टूट ना जाएं फिर से
दिल संभाल के रखते हैं अब

ग़म सिर्फ़ नाम के रह गए
ख़ुशी छुपा के रखते हैं अब

ज़हन में अब भी बसे हो
जज़्बात छुपा के रखते हैं अब

कोशिश है भूल जाने की
दिल बहला के रखते हैं अब

इश्क़ छोड़ तो दिया है
दिल्लगी सबसे रखते है अब

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16 APR 2022 AT 23:47

कमरे तक सिमट कर रहने वाला
मासूम चराग चांद से उलझ रहा

दिल में शोले आंखों में अश्क
उफ़ आग पानी से उलझ रहा

जिनका कोई ठिकाना नही
वो परिंदा आसमां से उलझ रहा

यहां रूह बे-दर्द हो गई है
और ज़ख़्म जिस्म से उलझ रहा

जब जज़्बात मर ही गए तो
बे-सबब मौत शव से उलझ रहा

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