कब तक अपनो के लिए मैं अकेला रोऊं
कब तक अपनो के होते हुए मैं अकेला रहु
कब तक मुझे गैर समझने वालो को मैं अपना कहूं
आखिर कब तक
मैं अकेला यूंही चलता राहु
आखीर कब तक
मैं इस गैर दुनिया में अपनो को खोजता रहूं
आखिर कब तक
मैं यूंही जीता रहू
दम नही हाथों में इन गम भरी रातों मे
मरने को बस जी चाहे जब कोई साथ ना हो इन रातों में/जज बातों में !
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