"ईद मुबारक"
मुझे लिखना है हिन्दू मुस्लिम
एक ही किताब के, एक ही पन्ने में
एक ही कलम की, एक ही सियाही से
और उन्हें बंद कर देना चाहता हूँ हूँ कई सालों के लिए
मैं देखना चाहता हूँ कि क्या वो पन्ने धुंधले तो नहीं पड़ जायेंगे, वो सियाही कहीं मिट तो नहीं जायेंगी, और कहीं वो रंग बेरंग तो नहीं पड़ जायेगा| मैं ये सब देखना चाहता हूँ,
मैं ये भी देखना चाहता हूँ
कि धर्म के नाम पे एक दूसरे को बांटने वाले वे लोग आखिरी वो किस धर्म से किस मज़हब से है|
मैं लिखना चाहता हूँ एक संदेश,
प्रेम का, प्रतीक का, मानवता का, मित्रता का, और एक ऐसा जिसका ना कोई धर्म हो ना कोई जाती हो और ना ही कोई पहचान पत्र हो|
मैं मिटाना चाहता हूँ दो मज़हबों के बीच की लकीरें,
और मिलाना चाहता हूँ लकीरों में बटे लोगों को,
मैं चाहता हूँ बगैर मज़हब की एक दुनिया...
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