अनुभव मिश्रा  
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Joined 13 December 2017


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Joined 13 December 2017

तेरा आना आकर जाना, कब सोचा था फर्क पड़ेगा।
एक दूजे को गले लगाना, कब सोचा था फर्क पड़ेगा।।
आँख मूंद कर मैंने दुनियाँ तुमपे ही सीमित कर डाली
फिरसे खुद को तनहा पाना ,कब सोचा था फर्क पड़ेगा।

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जानता हूं मैं,एक कण मेरा न होगा!
फिर भी सब कुछ समर्पित कर रहा हूं मैं।।

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जहां अपना कुछ नहीं होता,वहा सब कुछ पराया सा लगता है।।।

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व्यक्ति की मानसिकता तय करती है,की उसको जीवन में कितना दूर जाना है।

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किसी भी चीज़ का दिखावा भीड़ जरूर बढ़ा सकता है,पर समस्या का हल नहीं।।

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सबका अपना - अपना बातों का लहज़ा है।
सबका अपना - अपना तौर - तरीका है।
किसको रोके,और किसको जाने दे?
यहां तो सब खुद को ही समझना है।।

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छोटी सी उम्र में ही बड़ी जिम्मेदारियों का बोझा उठाया है,
हमने सिर्फ नाम से नहीं बल्कि, पथ - पथ पर अनुभव कमाया है !!

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हम वर्तमान में चाह उसकी कर बैठे,जिसका कोई भविष्य ही न था।।

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नकारात्मकता जब-जब द्वार पर आती है तब - तब हम अपने ही जीवन के पन्नों को पढ़ते हैं।

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जिम्मेदारी बड़ा जिम्मेदार शब्द है साहब बुरे से बुरे को भी अच्छे रास्ते पर लाकर खड़ा कर ही देता है।।

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