अनुभूति   (अनिता पाठक)
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Joined 27 March 2020


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10 JUN 2023 AT 14:33

तो बस प्यार को ही पनपने दें
क्या फर्क पड़ता है कि
कौन ज्यादा या कौन कम प्यार करता है
प्यार तो सिर्फ प्यार ही होता है
इसमें कोई शक और सवाल नहीं होता है

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10 JUN 2023 AT 14:29

भरसक तुम प्रयत्न करना
जब तक खुद से ना मानोगे हार
संभव ही नहीं तुम्हारा हार जाना

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5 JUN 2023 AT 16:31

कांटों से गुजरकर जब हम
गुलाब को पाते हैं
वो खुशी ही अलग होती है
उस खुशबू की
ये काटें ही तो गुलाब को पाने की
अहमियत बताते हैं
हिफाज़त भी करते हैं वो
अपने उस बेशकीमती गुल की
कामयाबी भी कुछ ऐसी ही तो होती है
जिंदगी के थपेड़ों से गुजरकर जब हम
उस नामुमकिन सी मंजिल को पाते हैं
बात ही अलग होती है उस कामयाबी की

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5 JUN 2023 AT 16:26

अच्छे किरदार पनपते हैं
बातें तो सब कर लेते हैं समझदारी की
भीड़ की इस दुनिया में कुछ लोग ही होते हैं
जो आपको समझते हैं

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5 JUN 2023 AT 16:18

जब जीत की खातिर नई राह चुनोगे
जब हर कठिनाई से कभी डरोगे कभी जीतोगे
बाधाएं तो बहुत ही आएंगी तुम्हारी राह में
कभी जीत का जश्न तो कभी हार महसूस करोगे
लेकिन कुछ भी हो जाए इतना ध्यान रखना
उम्मीद जब तलक है तब तलक हार ना मानोगे
रुक कर थोड़ी देर सुस्ता लेना फिर चलने को
पर सपने को अपने थमने मत देना
तुम अपने मन में कोई संशय मत रखना
एक दिन तुम जरूर अपनी सफलता का परचम लहराओगे

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1 JUN 2023 AT 14:07

और भागना कोई हल भी तो नहीं
जो कभी गिरा ना हो, निराश ना हुआ
कोई बिना कठिनाई के सफल भी तो नहीं

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1 JUN 2023 AT 14:03

एक thank you तुम्हें
तुम सिर्फ़ कलम नहीं
भाषा हो मेरी
शब्दों को पिरोकर
नए भाव को जन्म देते हो
एक अंधकार में तुम
आशा हो मेरी

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1 JUN 2023 AT 14:00

हम हर तजुर्बे को परखेंगे
थोड़ी राह मुश्किल है तो क्या
कभी गिरेंगे, कभी संभलेंगे
ठोकरें तो रास्ते की निशानी है
हम हर ठोकर से सीखेंगे
हारते हुए ही सही लेकिन
एक ना एक दिन ज़रूर जीतेंगे

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18 SEP 2022 AT 8:41

आधी प्याली चाय
थका हुआ चश्मा
बिखरे हुए कुछ पन्ने
राह देखती कलम
और मन में कुछ विचार
आधे - अधूरे से सब
मुकम्मल होने को तैयार
और दुविधा में हम
क्या लिखें
आधेपन की क्या परिभाषा दें
आधा भी तो कभी पूर्ण था
और अपना कुछ खोकर ही तो
इतना भी बच पाया है
अधूरे की बात खास होती है
पहले पूर्ण था और अब भी
पूर्ण हो सकता है
ख्याल का क्या है
कुछ भी आ सकता है

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18 SEP 2022 AT 8:37

ये पूनम का पूरा चांद
तेरे शहर से भी तो पूरा ही दिखता होगा ना
जैसे मैं रुक जाती हूं इसे देख
तू भी एक पल को कहीं ठहर जाता होगा ना
ये चांद कोई भेद भाव नहीं करता
जितना मेरे पास है उतना ही तुम्हारे पास भी है
वो एक हूक जो मेरे दिल में उठती है
कहीं एक धुआं तेरे ज़हन में भी उठता होगा ना

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