मेरे दिल में, तेरा आबाद किया हुआ जिसके हर जर्रे जर्रे में तस्वीर तुम्हारी, कुछ यादों और वादों की तासीर तुम्हारी, कभी ना मिली तुमसे, पर दिल को ज़िद तुम्हारी
इश्क था उन्हें हमसे, या तन्हाइ थी उनकी या इश्क में किसी से मिली रुसवाई थी, मै हर शाम का अनकहा इंतज़ार थी या उनके दिललगी का हिस्सा की चलता रहा रफ्ता -रफ्ता दूर रहने का सिलसिला, हम अनजान रहें इस रस्मे - ए -वफ़ा से, ये उनके इश्क करने का अंदाज था या किसी और से मिले रुसवाई का इन्तेक़ाम था मुझसे!!