ए मदहोश करने वाली फिजाओं ,
क्या तुम्हें पता है, मेरी उदासी।।
क्यों तुम बिना बात के मुझे छेड़ जाती हों,
क्यों तुम मेरे दिल को छननी कर जाती हों।
क्यों तुम्हें कोई बात कचोटती नहीं है,
क्यों तुम मेरी कभी सुनती नहीं हो।
माना तुम बेबाक सी बहती हो,
मगर मेरा हाल बेहाल करती हो।
कभी आना मेरे उजड़े चमन में,
लगाने मरहम फिजाओं का थोड़ा मेरे मन में।
ए मदहोश करने वाली फिजाओं,
क्या तुम्हें पता है मेरी उदासी।।
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