श्रील प्रभुपाद का आगमन, जबसे मेरे जीवन में हुआ है,
घना अंधकार था मेरा जीवन,नवीन सवेरा अब हुआ है।।
माया की जंजीरों में जकड़े मेरे मन को,
जबसे भक्ति का आश्रय मिला है,
अध्यात्मिक पथ पर अग्रसर हो,
मन मेरा कृष्णाभावनाभावित हुआ है।।
कभी यूं ही भटकते थे हम बिना किसी लक्ष्य के,
आज परम लक्ष्य को पाने का ज्ञान मिला है।।
श्रील प्रभुपाद के चरणकमलों में, मैं जबसे नतमस्तक हुई हूं,
विशुद्ध भक्ति और प्रेम का अमूल्य भेंट मुझे,
भक्तों और गुरुओं के आश्रय में मिला है।।
कर चार नियमों का पालन अब मैं,
रजो और तमो गुण से दूर हुई हूं,
सात्विकता के धरातल पर मैं स्थिर हो गई हूं।।
हृदय निर्मल हुआ है मेरा,मुझको मिला पापों से छुटकारा है,
जबसे हरिनाम के जप का आस्वादन,
मैंने अपनी जिव्हा को करवाया है।।
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठना,16 माला जप सर्वप्रथम करना,
पाद सेवा, श्रवण और कीर्तन करना,
हरि स्मरण में हर एक क्षण गुजरना,
हरि में ही मैंने अपना जीवन रमाया है।।
नहीं है इतना सामर्थ्य मुझमें की कर सकूं,
मैं श्रील प्रभुपाद का गुणगान,मुझे रहना है उनके चरणों में,
बनकर श्रील प्रभुपाद का नित्य दास।।
नव जागरण हुआ है मेरा,नव उत्साह अब आया है,
श्रील प्रभुपाद जैसा अमूल्य रत्न,
जबसे मैंने अपने जीवन में पाया है।।
-