..तवायफ..
हर एक की बाहों में जा कर इश्क बांटना आसान नहीं,
हां, मुझे भी दर्द होता है, क्या मैं एक इंसान नही..
फिर भी तुम मुझे तवायफ तो कभी वैश्या बुलाते हो
और हर रात मेरी चौखट पर यूं अपनी रात बिताते हो...
मैं वही मयखाना हूं जहां तुम जिस्म का पैमाना करते हो,
अपनी उदासी तो कभी अपनी हवस मिटाते हो,
सांझ होते ही सजती और बिस्तर नयी सजाती हूं,
तेरे इंतजार में यूं गलियों में खड़ी दिखती हूं...
है मेरी भी मजबूरी कुछ ये पेट ना जीने देती है,
दो जून की रोटी के लिए ये जिस्म का धंधा कराती है,
हां मैं तवायफ हूं, जिस्म का धंधा करती हूं...
©Wordsofanshika
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