Ansh Indian   (माँ का अंश)
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Joined 30 January 2019

23 APR AT 8:28

ये जो पल भर को,कभी मुसाफ़िर ठहर जाते हैं
क्या मिरे दर्द का सही मु'आयना वे कर पाते हैं

यूँ बेमतलब की तवक्को वे भला क्यूँ दिखलाते हैं
जब वे तमाशाई जमाने के जेर-ए-असर आते हैं

ये तसल्लियाँ और तंज़-ओ-तश्नी' बेअसर हुए अब सारे
दस्त-ए-रद कर खुद को ही हम बुत-ए-बे-मेहर बनाते हैं

शोख़ी-ओ-शंगी से रहा नहीं हैं कोई भी त'अल्लुक़ अब
किनारा-कशी कर ली हैं ज़िन्दगी के हर शय और रंग से

शफ़्फ़ाफ़ी को भी जो चश्म-ए-सियह से सियाह बताते हैं
हम भी उनके भरम को सही मान उनका शर्फ़ बढ़ाते हैं

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21 APR AT 7:16

ओ माँ तिरी यादों के गुलदान में तिरी महक का होता रहता है हर लम्हा इजाफ़ा
ओ माँ 'शमीम-ए-दुआ' सी तिरी महक जो थामे रहती है हाथ हर लम्हा हमारा

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20 APR AT 7:51

ओ मिरी माँ कोई लम्हा,कोई घड़ी तिरी यादों बिन गुजरी ही नहीं
रफ़्तगी में भी ओ मिरी माँ तिरे ही नाम का विर्द मैं करती रही

ओ मिरी माँ तुम ज़िन्दगी सी मिरी हर इक साँस में हो जो बसी
तिरे महव-ए-तबस्सुम रुख़ के सदके मैं हर हाल में मुस्काती रही

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19 APR AT 20:06

ख़त-ओ-किताबत से इतर भी रूह से रब्तगी निभाई जाती है
ख़ामोश दुआओं संग खामोशी से वाबस्तगी निभाई जाती है

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19 APR AT 18:55

तकल्लुफ़ और बे-तकल्लुफ़ी को करके दरकिनार
अजनबिय्यत को हमराह बना ज़ीस्त-ए-सफ़र तय किया जाए

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19 APR AT 17:41

ऐ गुलिस्तान-ए-ज़िंदगी तिरी इनायत ही तो है हम पर
जो अता करती है तू ख़ार के दरमियाँ भी महक-ए-गुल

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17 APR AT 21:45

तिरी पुर-ख़ुलूस मोहब्बत की ताबिंदगी से ही रौशन है मिरी दुनिया
तिरे ही रंग-ओ-आहंग के बाकी है अब मुझमे निशान ओ मिरी माँ

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14 APR AT 22:15

करूँ क्या क्या मैं बयाँ
हाल-ए-दिल जो है निहाँ
ख़ुद से भी कहते नहीं हैं
बेबस हुई है सिसकियाँ
ख़ामोशी का ओढ़े कफ़न
बेहिस हुए जज़्ब जो थे अयाँ
दर्द का एहसास होता नहीं
संग हुए हैं जिस्म-ओ-जाँ
जो कहूँ किसी से कभी
दिल फफक पड़ता है मिरा
इसीलिए बस चुप मैं रहूँ
ख़ामोशी को गले से लगा

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13 APR AT 7:25

ओ मिरी प्यारी माँ वाबस्ता हैं मिरी ज़िन्दगी में तुमसे ही रंग-ओ-नूर सारे
तिरे रुख-ए-रौशन के सदके ही अब मुस्कुरा कर दिन गुजरते हैं हमारे

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13 APR AT 7:12

ये बांवरा मन भी हैं बड़ा चितचोर
कभी ख़मोश है,तो कभी करे शोर

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