Annapurna Agnihotri   (Annapurna Agnihotri©)
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Joined 12 September 2018


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9 APR 2023 AT 11:59

नगरी-नगरी बना मुसाफिर
घर का रस्ता भूल गया
खुदरे-उखड़े पाथर से
टकरा के सम्भलना सीख गया।।

जग वैरागी बना मुसाफिर
अपनो से बिछड़ना सीख गया
तेरी-मेरी दुनियां से दूर
खुद में जीना वो सीख गया।।

नगरी-नगरी बना मुसाफिर
घर का रास्ता भूल गया।।

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3 APR 2023 AT 23:23

|| तरसती आंखों में आस के मोती
जो उस डेहरी पर बिखरे छोड़ गई
हमारी आस में बैठी हमाई अम्मा
न जाने कब गहरी नींद सो गई ||

|| इक पहर हमाये कदमो ने रफ्तार ली
जब दफ्तर ने हाथो में अच्छी तगड़ी पगार दी
तभी हड़बड़ाहट में ढोकर खाकर ज़मी दिखी
सांसो ने आह ली जब ज़मीन पर पड़ी हमई अम्मा दिखी ||

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16 JAN 2023 AT 15:56

एक और दिन गुज़र गया
कोई खाली हाथ घर गया
न जाने कौन टूटकर बिखरा,
कौन पंख लगाकर उड़ गया
एक और दिन गुज़र गया

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5 DEC 2022 AT 21:27

वक्त-वक्त की बाते
नज़रो से ओझल हुई राते
कुछ स्पर्श उन हथेलियों का
और धुंधला गई यादे
वक्त-वक्त की बाते।।

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10 NOV 2022 AT 12:15

हमको आज की खबर नही, तुम पुरानी बात करते हो
न लब्ज़ हैं न ज़बान, तुम दिल दुखाने की बात करते हो
अरे अरसे हुये उन रास्तो को छोड़े
और तुम एक बार और गुज़र जाने की बात करते हो
हमको आज की खबर नही, तुम पुरानी बात करते हो

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26 AUG 2022 AT 2:46

राते अच्छी लगती हैं,
बेवक़्त आसमां से बाते अच्छी लगती हैं
कुछ बहुत बंदिशें नही लगाते हम एक-दूसरे पर
बस यूँही टिमटिमाते तारो से मुलाकाते अच्छी लगती हैं।

हां रूठ जाते हैं 'कई रोज़' हो जाने पर वो भी
मैं भी घूर-घूरकर बस, उन्हें मना लिया करती हूँ
वो छिप जाते है जब कालो बादलों के पीछे
मै भी अड़ियल-सी वही बस बैठ जाया करती हूँ

वो भागते हैं कभी - कभी, खुला आसमान पाकर
पर मेरी नज़रो से वो अक्सर हार जाया करते हैं
अब तो मेरी बारी थी, उनसे रुठ जाने की,
पर हमेशा वो आकर मना लिया करते हैं

हाँ मिलते हैं कुछ इसी कदर, हम लोग कभी-कभी
न जाने कितनी बाते मै उन्हें, वो मुझे सुना दिया करते हैं
कुछ ऐसा ही जाता हैं वो मेरा शनिवार का एक दिन
जब हम दोनों एक दूसरे को पका लिया करते है
और देर रात बैठ, बस बतिया लिया करते हैं।

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7 AUG 2022 AT 22:25

मैं, डर और वो खुशी
जो डर को हराने, उससे दो कदम आगे जाने की थी
इक दफा फिर उसे हराकर, खुशी को गले लगाने की थी
शोर मचाने की थी, चीखने- चिल्लाने की थी
एक और जीत, जो डर को हराने की थी
हाँ
डर डराता रहा, पर वो ज़िद जो उससे आगे जाने की थी,
उससे नज़रे मिलने की थी, आँख में आँख डालकर बतियाने की थी
और शायद उस जीत का जशन मनाने थी

मैं, डर और वो खुशी जो उसे डराने और
बस उससे दो कदम आगे जाने की थी।

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18 JUN 2022 AT 22:38

एहसास

कुछ टूट रहा हैं, पीछे छूट रहा हैं
एक एहसास, हलक से आवाज़ खींच रहा है।

कुछ बेज़ान-सा, हमसफ़र बन चला हैं शायद
जो मेरी रूह के गम में मुझे मीच रहा हैं
एक एहसास, हलक से आवाज़ खींच रहा हैं।

अब कुछ खोने को न था शायद
बस इसीलिए, बेखौफ-बेतहाशा तेज़ दौड़ रहा हैं
पर, वो एहसास, जो हलक से आवाज़ खींच रहा हैं।

कहने-सुनने को अब कुछ कहाँ बचा था
हाँ एक शोर हैं, जो धुन के सुर में मिल रहा था
पर, वो एहसास, जो अब भी हलक से आवाज़ खींच रहा था।

खैर........सारी आजमाइशों ख्वाहिशो रंजिशों से दूर
चुपचाप खामोश आधी रात में जागे से
पर इस चकाचौंध में कुछ अटपटापन आया
जब उस एहसास को अपने आस-पास न पाया
तब सर चकराया, अपने आप को हलकाया, समझाया-बुझाया चुपचाप बैठाया
कुछ वक्त बाद इस हलकेपन का भार समझाया
जब अपनी हलक को हमने.............बेआवाज़ पाया।

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18 MAY 2022 AT 13:27

मुझे उड़ना हैं बहूत दूर तक जाना है
इस आकाशगंगा को अपनी आंखों में समाना हैं, बस
मुझे उड़ जाना हैं

उड़ते-उड़ते उस छोर तक जाना है
जहाँ लोगो से दूर एक शुकून का आशियाना हैं, बस
मुझे उड़ जाना हैं

शायद पिजड़े को तोड़ आसमाँ में घर बसाना हैं
अपने ज़हन में इन सारे रंगो को समाना हैं, बस
मुझे उड़ जाना हैं

मुझे उड़ना हैं इतना दूर उड़कर जाना है
की समंदर-आसमाँ संग बैठ शाम तलक बतियाना है बस इसीलिए
मुझे उड़ जाना हैं।

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16 MAY 2022 AT 1:15

मुक़म्मल करो तो आगे बढ़ो
...वरना अभी अलविदा करो...

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