एहसास
कुछ टूट रहा हैं, पीछे छूट रहा हैं
एक एहसास, हलक से आवाज़ खींच रहा है।
कुछ बेज़ान-सा, हमसफ़र बन चला हैं शायद
जो मेरी रूह के गम में मुझे मीच रहा हैं
एक एहसास, हलक से आवाज़ खींच रहा हैं।
अब कुछ खोने को न था शायद
बस इसीलिए, बेखौफ-बेतहाशा तेज़ दौड़ रहा हैं
पर, वो एहसास, जो हलक से आवाज़ खींच रहा हैं।
कहने-सुनने को अब कुछ कहाँ बचा था
हाँ एक शोर हैं, जो धुन के सुर में मिल रहा था
पर, वो एहसास, जो अब भी हलक से आवाज़ खींच रहा था।
खैर........सारी आजमाइशों ख्वाहिशो रंजिशों से दूर
चुपचाप खामोश आधी रात में जागे से
पर इस चकाचौंध में कुछ अटपटापन आया
जब उस एहसास को अपने आस-पास न पाया
तब सर चकराया, अपने आप को हलकाया, समझाया-बुझाया चुपचाप बैठाया
कुछ वक्त बाद इस हलकेपन का भार समझाया
जब अपनी हलक को हमने.............बेआवाज़ पाया।
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