न कोई ठिया था न कोई ठिकाना
किराए के कमरे से शुरू किया था
ज़िंदगी का अफसाना
गैर जिम्मेदार बाप का गैर जिम्मेदारी वाला सहारा था
चाय की टपरी पर चाय पिलाने वाला चमकू
हर ग्राहक को प्यारा था
मां छोड़ कर चली गई बचपन में
क्योंकि बाप शराबी मक्कार आवारा था
मगर छोटू की बातों में ,सकारात्मक सोच
कुछ करने की कसक आत्मविश्वास न्यारा था
सपनों की उड़ान ,जगह और हालात नहीं देखती
कई सालों बाद आज छोटू से मिला
संजोग से एक cab में कुदरत ने मिलवा दिया
पूरे सफर में न वो कुछ बोला ,न मैं कुछ बोला
जब qr code मांगा पेमेंट के लिए तब अचानक से उसने मुझे देख लिया और बोला बड़े भैया आप
गाड़ी से उतर कर उसने मुझे भी नीचे उतारा
और गले लग कर रोने लगा मुझे सच में समझ नहीं आ रहा था आख़िर ये मांजरा क्या है
भैया शायद आपने मुझे पहचाना नहीं
मैंने कहा बिलकुल नहीं बोला याद कीजिए आज कई साल पहले आपने मुझे 5000rs दिए थे
और कहा था खूब पढ़ाई करो
बांद्रा रेलवे स्टेशन पर एक चाय वाले छोटू को दिए थे
भाई उस बात को 11 साल हो गए बोला भैया मैं वही लड़का हूं मैने बीएससी डिजाइन कंप्लीट किया
और एक छोटा सा घर भी लिया नवी मुंबई में
दो कैब हैं अपनी भैया आपने जो हौसला और हिम्मत दी उससे मैं यहां तक आ गया
मेरे पैरो तले ज़मीन खिसक गई आज इतना भावुक हो गया ऐसा लगा किसी ने भीतर तक
बहुत गहराई में स्पर्श कर लिया
शुक्रिया छोटू ।
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