यूं तो अल्फाज़ अल्फाज़ ही होते हैं,
पर निकले जब तेरी कलम से आफताब होते हैं,
पढ़ते हैं तुझे तो लगता है आयत हो जैसे,
तेरे हर शब्द लगता है मिश्री हो जैसे,
नहीं मालूम था हमें ज़िन्दगी क्या होती है,
मिले तुमसे तो लगा जिंदगी ऐसी होती है,
क्यूं ना गुरुर करूं खुद पर,
जब दोस्त आप जैसा हो,
और क्या लिखूं ज़िन्दगी तेरे बारे में,
तुम स्वयं मां सरस्वती की आराध्या हो,
दुआ करता हूं तुम खुश रहो, स्वस्थ रहो, लिखतीं रहो.....
-