Ankur Shukla   (©अंकुर अज्ञेय)
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Joined 6 January 2019


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29 MAR 2023 AT 20:12

वो चलती रही बल-खाकर
नदी की तरह।
मैं खड़ा देखता रहा, उसे!
किनारों की तरह।

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12 MAR 2023 AT 19:36

विश्वास की लाज रखी है तूने मेरी
लेकिन यकीन भी तो तोड़ा है
बना दिए है भवन, अट्टालिकाएं लेकिन,
नीड़ गौरया का कहां छोड़ा है

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8 MAR 2023 AT 9:17

लाल हरे नीले पीले रंग,
मुझको नहीं सुहाते हैं।
इस होली पर इस सिंदूरी,
रंग से मुझको रंगना तुम।।

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5 MAR 2023 AT 22:24

खिली है धूप अरसे बाद, हुआ है साफ ये मौसम
सुगंधित है मलय बहती, थोड़ा करीब! आओ तुम
'शशि' सी हो हसीं तुम, क्यों क्रोधित हो के बैठी हो
चलो अब अश्रु पोंछो और थोड़ा मुस्कुराओ तुम

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27 FEB 2023 AT 21:24

I have realized that
the mere presence of you
gives me strength.

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9 FEB 2023 AT 9:24

लोग जमा थे, सभा जुटी थी
लेकिन तू ना दीख रही थी
मन में मेरे..... बेचैनी थी
आंखें तुझको ढूंढ़ रही थी

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13 JAN 2023 AT 23:27

मेरे चहुँ ओर तेरा चेहरा नजर आता है
आती है तेरी याद मगर तू नहीं आता है
हैं खिले फूल, गुलाबी! चमन में कितने
रंग है भरपूर, मगर! नूर नहीं आता है

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17 DEC 2022 AT 18:27

था माह कार्तिक वो! ......थी धूप गुनगुनी सी
खिड़की से दिन में मैंने, जब चांद को था देखा

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5 NOV 2022 AT 20:54

परी इंद्र की

उसकी आँखें नील गगन सी,
जिसमे हैं सागर के मोती.
मंद मंद मुस्कानें उसकी,
आसमान के तारों जैसी.
उसका हंसना लगता ऐसे,
ज्यों बिखरी हो प्रभा इंदु की.
और देख चेहरे को लगता,
है वह कोई परी इंद्र की.

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29 OCT 2022 AT 23:45

घन जैसे घने केश की छाव में
कांधे पर सर रख कर उसके,
कर में कर लेकर के उसका
खो करके स्वप्नों में उसके,
और पूछता अरि से अपने
अब तुमको कैसा लगता है......

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