आ गए कैसे तुम और मैं इतने करीब, मैं अल्हड़, बेजुबान, बेफिक्र
अपने जज़्बातों से,
शायद कह गई सब कुछ आँखों से और तुम पढ़ गए आँखें मेरी,
के तुम पढ़ गए बेजुबानी मेरी
पर मैं सोचती हूं के मैं और तुम 'हम' क्यों मिले, शायद मिलना ही था
हमें, क्या लिखा है नसीब में वो तो नहीं जानती मैं
पर शायद होना एक होना है हमें, इसलिए पढ़ पाए तुम मेरी बेजुबानी, मेरी आँखें, मेरी कहानी …..
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