सुनों सुनों शहर पर बारूद के गोले बरसाने वालों,
सुनों सुनों बच्चो को दिन रात प्यासा तरसाने वालों।
ये जर्जर हुई इमारतें क्या तुम्हारी वीरता का प्रमाण हैं,
सुनों सुनों इन युद्धपोतों से मासूमो को डराने वालों।
रोती बिलखती आंखें हृदय तुम्हारा पिघला न सकी,
सुनों सुनों पनडुब्बी में मुँह अपना छिपाने वालों।
उड़ती हुई मिसाइलों से तारों की नींद भी टूटी होगी,
सुनों सुनों चाँद को भी सफ़ेद कफ़न ओढाने वालों।
जिस ज़मीं को माँ कहा उसी पर वज्राघात किया,
सुनों सुनों इंसानियत का सिर शर्म से झुकाने वालों।
धुआँ धुआँ हैं आसमां न जाने फिर कब नीला होगा,
सुनों सुनों गंधक की गंध से फूलों को मुरझाने वालों।
कोई बूढ़े का सहारा था कोई माँ का बेहद दुलारा था,
सुनों सुनों कब्रगाह को यूँ बेसब्री से सजाने वालों।
शहर जीतकर भी शहर की आत्मा जीत न पाओगे,
सुनों सुनों हर देश को एक शरीर मात्र समझने वालों।
हवा भी बागी होकर तुम्हारे ध्वज से रुख मोड़ लेगी,
सुनों सुनों खून से सनी विजय पताका फहराने वालों!!
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