वो सांस गिन रहा है, दो सांस पाने को,
मैं बेबस खड़ा हूं,
मिट्टी का पुतला ही तो हूं, भगवान कहां हूं।।
थक गया हूं लोगों के आंसू देखकर,
मैं निशब्द खड़ा हूं,
इंसान ही तो हूं, भगवान कहां हूं।।
मां रो पड़ती है मुझे किट पहना देखकर,
पसीने में लतपत पड़ा हूं,
किसी का बेटा भी तो हूं, भगवान कहां हूं।।
मन बैठ सा जाता है, हज़ार लाशें देखकर,
पत्थर बन पड़ा हूं,
डॉक्टर ही तो हूं, भगवान कहां हूं।।
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