ANKIT DIWAKAR   (अंकित दिवाकर की कलम से)
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Joined 16 February 2019


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Joined 16 February 2019
1 JAN 2021 AT 20:06

कैसा हो गया हूं मैं, पहचान छीन सी गई है।
मानो किसानों की मेहनत की फसल,
किसी आंदोलन की भेंट चढ़ गया हो।।

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11 APR 2020 AT 20:20

🙂
रिश्तों में
खुशी का मर्म
जानने निकला मैं
दुख का आधार मिला
दुख का मर्म समझा
तो खुशियों का संसार मिला

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10 FEB 2020 AT 17:27

चलो आज फिर से कलम थामते हैं,
गुजरे वक्त को वक्त देकर बांधते हैं,
वक्त जो रेत की तरह फ़ीसल गए मुट्ठी से,
थोड़ा हौसला जुटा उससे बांध बांधते है।
चलो आज फिर से कलम थामते हैं।।

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22 NOV 2019 AT 22:49

कोई खेल गया मेरे जज्बातों के साथ
बनाकर झूठा फसाना अपने हालातों के साथ

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14 AUG 2019 AT 17:49

होठों पर मुस्कान दिल में अरमान लिए हुए,
नापने को सारा आसमान लिए हुए,
मुश्किलों को करके धुआं धुआं,
लक्ष्य की तरफ जब चाहे उड़ान लिए हुए।

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19 JUL 2019 AT 19:43

जहां अपनापन के भी दावे थे,
पल पल पर छलावे थे,
मतलब का एक रिश्ता था,
जो समय-समय पर दिखता था,
पढ़ाई थी की बनावट थी,
नंबर कम ज्यादा आने की आहट थी,
साजिशों का अंबार था,
ऐसा लग रहा था मानो बाजार था,
अतिक्रमण की तरह हट गए हम,
अलग अलग राहों में बट गए हम,
बस अफसोस सिर्फ इस बात का है कि,
दोस्त तो मिले लेकिन दोस्ती नदारद थी।

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15 JUL 2019 AT 23:49

माँ आपने पसीने से तरबतर होकर भी हमें सुकून का अहसास दिया अब क्यों ना हम भी कड़ी मेहनत के पसीने से सराबोर होकर हमारी कामियाबी का सपना देखने वाली आपकी अखियों को सुकून के दो पल अर्पित करें।

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24 MAY 2019 AT 19:22

स्वयं की अभिवृत्ति के स्पष्ट चित्रण हेतु
मैं अक्सर मौन हो जाता हूं
जब देखता हूं इस सृष्टि की अद्भुत सुंदरता को
तो मानो उस में ही गौण हो जाता हूं

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17 MAY 2019 AT 20:20

दस्तक देते हाथ थके मन नहीं थकने दूंगा
क्या हुआ जब सब हार कर लौट गए
मैं अपना विजय अभियान नहीं रुकने दूंगा

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16 MAY 2019 AT 21:48

बने मासूम आप लेकिन
दांव ये टिक नहीं पाया
निकले जो टेढ़े तीर की भांति
तो जख्म खुद को ही पाया
रिश्ते थे ये बड़े अनमोल
जिसका मोल न आपने जाना
रिश्तों के पावन आंगन को
आपने बाजार बना डाला
हुए जो दूर रिश्तो से
तो आप भीड़ बन गए
सुख-दु:ख का साथी ना रहा
और आप फकीर बन गए
अगर है राजा फिर से बनना
समय से आप पश्चाताप करना

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