फूल कौन कहता है ईश्वर को दूसरा फूल जचता नही मेरा मौला उसे भी पूछता है जिसे ये इंसान पूछता नही और तुम कर लो बुराई लाख,पर उसकी आंखो से कोई छुपता नही और कौन कहता है तुझसे की,मेरा खुदा हंसता नही
रात के ख़्वाब अब खुली आंखों से देखती हूं ज़िंदगी जज्बातों से नही,अपने उसूलों से जीती हूं ये चांद लम्हों का सफ़र नही मेरे मौला मै तो तुमसे पूरा आसमान चाहती हूं।