ख़ुद को क़ैद नहीं करना, अभी सब ख़ुशियाँ पानी है
एक पल ही चाहे मिले.. पर पूरी तरह जी जानी है
जैसी चले तेरी धूप-छाँव, वैसी ही इक निशानी है
अंधेरों-उजालों से गुज़रती.. मेरी भी यही कहानी है
एक मुसाफ़िर हूँ यहाँ, सफ़र में उम्र बितानी है
हर सूरत रस्ते में.. सामने लगे जानी पहचानी है
ज़िंदगी तेरे दम से ही तो हूँ, बाक़ी महफ़िल बेगानी है
जीना तेरी आरज़ू में.. कहाँ अपनी मर्ज़ी से गुज़ारनी है
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