कि उन्होंने इतने रंग कैसे बनाए?
इतनी प्यारी तितलियां, इतने प्यारे फूल,
रात में जुगनू, दिन में भंवरा?
ठंडी हवा, काली घटा,
सब कुछ कितना सोच समझकर, फ़ुरसत में बनाया होगा!
पर इंसानों को फ़ुरसत से क्यों नहीं बनाया?
क्यों नहीं सिखाया पाठ सहनशीलता का?
प्यार, मोहब्बत, दूसरों के जज़्बात समझने का?
उसका बहाना देकर, एक दूसरे को काटने दौड़ता है,
कुदरत के हर नायाब चीज़ों को ख़राब करता है,
देहशत फैलाता है!
अभी भी वक़्त है!
बनाइए ना, थोड़े अच्छे इंसान।
मत बनाओ ना, और शैतान!
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