लोभी दुनिया से दूर चली वो ,
सारे मोह माया की जाल तोड़ चली वो ।
पीछे अश्रु भरे आँखो को छोड़ गयी वो ।
अपनो को ही अनजान समझ दूर गयी वो ।
देख उड़ चली वो ।
एक नई शुरुआत के लिए उड़ चली वो ।
काश की हम फिर से तुम्हारी वो ,
सूरज की किरणों-सि ऊर्जा युक्त मुस्कान,
बादलो के ग़र्ज़नो-सा गुस्सा ,
सागर की लहरो-सि फटकार ,
पुस्तकालयों-सा ज्ञान ,
फूलों-सा कोमल स्पर्श ,
व मधु-सि मीठी बातें ,
अनुभव कर पाते ।
हमें मालूम ही नही था ,
तुम सफर आधे मे ही छोड़
दूसरे मंज़िल की तलाश मे
इतनी जल्द ही निकल जाओगी ।
इस माया भरे संसार की धुंध में ,
इतनी जल्दि ही हमारी
चक्षु से ओझल हो जाओगी ।
एक माँ से तो तुमने अपना
अस्तित्व पाया था ,
और दूसरी मे इतनी जल्दि ही
विलीन हो जाओगी ।
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