आँखें मूंद लूंगा थिरकते होंटो को दबा लूंगा ना आँसू निकल पाएंगे ना ही कुछ बयाँ कर पाऊंगा ।
इंसाफ कौन है ? पैदल चलने वाला एक मुसाफिर बस जिसकी मंजिल बहुत पास पर रास्ते बहुत टेढ़े और लंबे है ।
चुप्पी की कीमत जो तय हो गई है उसे लेकर नई शुरूआत करूंगा भूल तो नहीं पाऊंगा जो हुआ, जो देखा, जो सहा पर पिछले कल की चिंता में आने वाले कल की चिता नहीं जलाऊंगा ।
उम्मीद है कि एक दिन दुनिया जानेगी उस दिन कोई आँखें मूंदे नहीं खड़ा होगा थिरकते होंटों को कोई नहीं दबाएगा आँसुओ को कोई नहीं रोक पाएगा सब कुछ मेरे बिन कहे ही बयां हो जाएगा सब कुछ मेरे बिन कहे ही बयां हो जाएगा ।।