उम्मीद का तराजू। क्या सच्चा, क्या झूठा? क्या सही, क्या गलत? क्या अधूरा, कौन पूरा। बेबस नजर , चुप निगाहें कोई आवाज़ दे तो सिर्फ हामी में सिर हिलाऐ। लोगों से डर , अनगिनत खौफ के पहरे, हर जुल्म तकदीर समझ सह जाए । ये ना उम्मीदी का आलम बुरा तो नहीं, जो लाश हैं जिंदा सपनों के मर जानें का उसे गिला तो नहीं। सज्जन कह गए सारे दुख की वजह औरों से उम्मीद हैं , ज़रूरत से ज्यादा क्यों लोगों से रखें कोई वास्ता। आज दुनिया साथ है कल खुद तुम्हे दिखा देगी अकेलेपन का रास्ता। रिश्ते नाम के होते हैं,जब तक पास मैं कुछ हैं तो सब जानकर हैं , किसी रोज़ वक्त बदला तो लोग भी बदल जायेंगे जैसे चुनाव के बाद सरकार। कैसे वादे, कौनसी बाते सब हवा हैं, वक्त-वक्त की बात हैं जिसका कल था कोई सब कुछ आज उस ही की ना- माजूदगी का गवाह हैं। दूसरों से उम्मीद क्या लगानी, खुद से लगा कर ही निभा पाओ तो कहना। ये संसार
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