कौन हूँ मैं…?
एक आईना हूँ
एक परछाईं हूँ मैं
मेरे मन ने कहा कि तू रज है
जिसे अब किसी और चीज़ की चाह नहीं
मेरे मन ने कहा कि तू हज है
जिसे कहीं भी जाने की ,तीरथ सब करने की
अब कोई जरूरत नहीं क्यौंकि प्रभु अब ह्रदय में बसते हैं
इस से ज़्यादा और कोई तप ज्ञान नहीं
मेरे मन ने कहा कि क्या तू सज है
मैंने कहा कि हाँ मैं सज हूँ
हर परीक्षा ,हर इम्तिहान के लिये मैं सज हूँ
हाँ ,एक आईना हूँ
एक परछाई हूँ मैं
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