Amarjeet Shah   (Amarjeet)
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I understand your feelings
Joined 30 September 2020


I understand your feelings
Joined 30 September 2020
6 JUN 2022 AT 20:51

अपना ये उम्मीद-ए-सफर कहीं तो ले जाएगा।
नदी, पहाड़, झरना, घर कहीं तो ले जाएगा।
यादों को खुद से इसलिए भी दूर नही होने देते।
तन्हाई में ये हसीं मंजर कहीं तो ले जायेगा।

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2 JUN 2022 AT 7:29

खुद से बाहर निकल कर देखोगे तो मालूम होगा।
औरों की नजर से भी ये दुनिया बहुत खूबसूरत है।

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30 MAY 2022 AT 21:09

हाथों की लकीरों से शिकायत क्यों करें।
क़िस्मत मेरे गमों में रिआयत क्यों करे।
ये जो मेरे जख्म हैं मुझमें ही रहने दो।
इनकी सरेआम भला पंचायत क्यों करें।
हर शख्स यहां भटक रहा है बेखुदी में।
कोई किसी और को हिदायत क्यों करे।
एक उम्र गुजार दी हमने काफीराने में।
अब कोई खुदा हम पर इनायत क्यों करे।
हम रफ्ता - रफ्ता लुटें हैं इस शहर में।
जिसे खबर है वो भला हिकायत क्यों करे।

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8 MAY 2022 AT 11:15

हाथों की लकीरों से शिकायत क्यों करें।
क़िस्मत मेरे गमों में रियायत क्यों करे।
ये जो मेरे जख्म हैं मुझमें ही रहने दो।
इनकी सरेआम भला पंचायत क्यों करें।
एक उम्र गुजार दी हमने काफीराने में।
अब कोई खुदा हम पर इनायत क्यों करे।

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20 APR 2022 AT 8:58

जहां जहां भी गया वहां मिल गया।
एक दर्द मुझे खामोखा मिल गया।

मैने खुद को छुपाए रखा हर किसी से।
फिर भी जख्मों को मेरा पता मिल गया।

भटकता रहा गम सारे जमाने में।
मेरे ही दिल में उसे आशियां मिल गया।

मायूसी जो ढूंढने निकला लकीरों में कहीं।
मेरे ही हथेली में कहीं खींचा मिल गया।

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15 MAR 2022 AT 12:30

हर रोज़ दिल से एक जनाजा- ए- आरजू निकलता है।
हम जब भी लिखते है तो कलम से लहू निकलता है।
एक सीने में दफन उम्मीद रह रह कर उफन पड़ती है।
जब जब मेरे नजरों के सामने से तू निकलता है।
हम इश्क वालों से बेहतर भला किसे पता होगा।
कैसे दिल में दर्द बढ़ता है और सुकू निकलता है।
हम जिंदा लाशों से पूछो मरने का मंजर।
कैसे तड़प तड़प कर जिस्म से रूह लिकलता है।

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14 MAR 2022 AT 15:37

उलझी है जिंदगी रात और दिन का दरमिया।
ना धूप कम होती है ना अंधेरा छटता है।
टिकी हैं निगाहें फलक पर शाम के दीद को।
हर रोज निराश ही लौटना पड़ता हैं।

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26 DEC 2021 AT 8:40

उसका गम मेरे हिस्से में आया तो पता चला।
आंसुओ को छुपा कर मुस्कुराया तो पता चला।

उसे जाते देख वो शहर इतना मायूस क्यों था।
वो फिर कभी लौट कर ना आया तो पता चला।

मुस्कुराहटों ने मेरी खुशियों का भ्रम रखा था।
मैने जब अपना जख्म दिखाया तो पता चला।

क्या गुजरती है लोगों पर जो सपनों का कत्ल करते हैं।
एक शाम अपनी उम्मीदों को जलाया तो पता चला।

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25 DEC 2021 AT 20:56

सबके गम खुद में छुपा कर चला जा।
ऐ साल तू नए साल को बुला कर चला जा।

ख्वाइश नही पर सबकी ज़रूरतें तो पूरी हों।
तू बस इतना सा ही दुआ कर चला जा।

किसी ने अपने खोएं किसी ने सपने खोएं।
अब तो तू सबका भला कर चला जा।

सब नज़रे तेरे जाने के इंतजार में है।
अब बस तू मुसकुरा कर चला जा।

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17 DEC 2021 AT 7:24

किताबों ने हमेसा झूठ ही कहा है ।
जब भी मैंने पूछा ज़िंदगी क्या है ।
कभी उसने बोला कबीर का दोहा ।
कभी उसने बोला ठाकुर का कुआं है ।
कभी उसने सुनाई पारियों की कहानी।
तो कभी बोला महादेवी का घीसा है।

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