कितना अच्छा लगता है ना मधुर संगीत, शांति से बैठ किसी प्रेमगीत को सुनना, उसे गुनगुनाना। अप्रतिम अनुभव। अब आंखे खोलो, तुम्हारा प्रेमगीत समाप्त होता है। कथन यह है कि तुम्हारी ये सभ्यता प्रेम जानती भी है। एक ऐसी सभ्यता जो खोंखले धर्म और युद्ध के निचले स्तर पे टिकी है वो किसी भाव के चरम बिंदु को समझे यह यथार्थ के परे है। यह सभ्यता अपने उस मोड़ पर है जो केवल तीन स्तंभ पे है; काल कलम और कालिमा।
काल से बद्ध, कलम से मुग्ध और कालिमा में गुम।
भले ही तीनों प्रेम को तुलना में कमजोर हो लेकिन कम-स-कम अस्तित्व में तो है।
अब तुम प्रेम की तलाश कर सकते हो। तुम चलोगे; चलोगे और फिर ठहर जाओगे। थक कर, झुंझला कर, हार मान कर, काल के द्वारा पराजित होकर बैठ जाओगे। फिर तुम्हारे सामने होगा एक कागज का टुकड़ा जिसपे तुम या तो विलाप करोगे या फिर प्रेम को पाने का मिथ्य कथन। और तुम्हारे पास तब केवल कलम होगा। गौर करो केवल कलम, प्रेम नही। इस काल-कलम को पाकर और पार कर तुम जीवन के सबसे सत्य रूप को देखोगे। कुछ ऐसा देखोगे जो तुम्हे नही दिखेगा। कालिमा। और अब तुम्हे लगेगा ये अंत है। काल थम जाएगा, कलम टूट जायेगा, और एक आयाम होगा, कालिमा से पूर्ण। एक अगोचर स्तिथि।
फिर शायद तुम्हे एहसास हो, एक बेहद ही आसान युक्ति है गोचर रहने की; एक कथित काव्य है: काल, कलम और कालिमा।
-