'माँ' क्या होती है मुझे नहीं पता
मैंने 'माँ' के नाम पर सिर्फ उसकी तस्वीरों को देखा है...
बहुत कुछ छीना है मेरे मुकद्दर ने मुझसे
हर बार हारकर मैंने सिर्फ लकीरों को देखा है
ज़िंदगी के इस शतरंज में 'माँ' से बड़ा कोई वज़ीर नहीं
यकीन मानो मैंने तमाम किस्म के वजीरों को देखा है
मैंने दुनिया देखी है दुनियादारी देखी है
मुहब्बत देखी है हर किस्म की यारी देखी है
वफ़ा देखी है गद्दारी देखी है
भीख मांगते हुए मैंने यहाँ अमीरों को देखा है
लोगों के मरते मैंने जमीरों को देखा है
मगर 'माँ' क्या होती है मुझे नहीं पता
मैंने 'माँ' के नाम पर सिर्फ उसकी तस्वीरों को देखा है
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