Akanksha Awasthi   (Akanksha Awasthi)
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तुम लोग बड़े लोग हो हम ख़ाकनसीं हैं...
Joined 8 January 2017


तुम लोग बड़े लोग हो हम ख़ाकनसीं हैं...
Joined 8 January 2017
16 SEP 2020 AT 20:04

जिंदगी एक डोर में लगी कई गांठों का नाम है,
उम्र के साथ एक एक गिरह खुलती जाती है,
जिंदगी की डोर उतनी ही लंबी दिखती जाती है....
उम्र के साथ सुलझती गिरहों की ये गुत्थी,
जिंदगी की डोर को सीधा, सरल, शांत बना देती है.....

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22 AUG 2020 AT 21:38

नहीं है तेरे आंसू अब किसी गंगा से पाकीज़ा
कि फ़ारिग़ हो चुका है तू,अभी रोया नहीं करते ...

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25 JUL 2020 AT 21:31

When a Writer has Nothing to say.......


This itself is a STORY

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22 OCT 2019 AT 18:34

जिंदगी उसको बेसुमार मिली
मौत मांगी थी जिसने सजदे में....

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21 OCT 2019 AT 13:35

वक्त के साथ ठीक कुछ नही होता....
बस जो होता है उसके साथ रहने की आदत पड़ जाती है.....

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25 MAR 2018 AT 19:02

कविताएं सिर्फ कलम से नहीं लिखी जातीं
कुछ कविताएं लहू मांगती हैं....

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21 DEC 2017 AT 23:57

याद दिलाता है दिसंबर,
किसी के लहजे का सर्द हो जाना....

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6 DEC 2017 AT 18:49

कल किसी चांद के सिरहाने पर
चांदनी छटती रही भोर तलक..

इसकी आंखों में चांद की चाहत
उसकी आंखों में उतर आया चांद.!!

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5 DEC 2017 AT 23:11

मोहब्बत,हां वही जुनून की हद तक वाली मोहब्बत!
मोहब्बत सिर्फ पहली दफा ही होती है और मुकम्मल भी,
हर हाल में,हर मौजू में, फिर वो मिले या न मिले..

और उसके बाद जो होता है उसे प्यार कहते हैं शायद
जिंदगी भर का साथ,निबाह कहते हैं शायद

पहली मोहब्बत में होते हैं चांद तक चलने के वादे
मुट्ठियों में जुगनू होते हैं और आंखों में सितारें

फिर तो चांद जमीन पर आ जाता है और
जुगनू आसमान मे, आंखों में कुछ उम्मीदें

औऱ फिर सारी जिंदगी पहली मोहब्बत की भीनी खुशबू में
कुछ और छौंक लगाते लगाते कट जाती है..प्यार से..

पहली मोहब्बत की खुश्बू संग लिपटी 'निविया मेन' की महक के साथ
जीना न तो मुश्किल है ....न ही आसान.....

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3 DEC 2017 AT 11:00

रात के आखिर पहर में
लिखना चाहती हूँ हर रोज
कोई कविता
कोई खत
कोई ग़ज़ल
कि जिसमे रात के सारे अंधेरों
को लिखूं
और फिर मिटा दूं
उन मिटे लफ़्ज़ों के ऊपर
धीरे-धीरे छिटक दूं,सुनहरा सवेरा
की जैसे धीरे धीरे
रात बढ़ती है
सुबह से मिलन को

तुम्हारी सुबह को मिल जाएं
थोड़े अल्फ़ाज़ जिसमे
डूब जाए बीती रातों का अंधेरा
तुम्हारी हर सुबह को एक यही
तोहफा मुकम्मल है

जो तुम पढ़ कर उसे
मुस्कुरा दो हल्के से भी तो
मेरे हर लफ्ज़ की
बस एक यही मंज़िल मुकम्मल है.....

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