AK Kaushik   (अल्फ़ाज़जोलिखेतेरीयादमें)
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Joined 11 February 2020


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Joined 11 February 2020
1 MAY AT 12:58

जीत लेंगे साँसों की जंग जो रब की मुझपर मेहरबानी रही
मुझे मौत देने में सबसे ज्यादा अपनों की ही कारस्तानी रही।

(सम्पूर्ण रचना अनुशीर्षक में प्रणयरत है)

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1 MAY AT 12:23

चाहतों के रंग
इमरोज़ इस नवप्रभात पर फिर प्रीत का पल्लव फूटा है,
चाहतों के रंग का फिर जीवन में यह प्रादुर्भाव अनूठा है।

नफ़रत की चोट अनेक खाकर भी प्यार का अतिरेक है,
मन-दर्पण में अंकित छवि के दर्शन से मिले ये सेक है।

सूखाग्रस्त जमीन में चाहतों का रंग रानी बिखेर गई है,
मुझ बेहोश को जगाने की ख़ातिर मना देर-सबेर गई है।

चाहतें सुर्ख है, मेहँदी की सुर्खी भी इसबार ख़ूब रुची है,
रातों के उपवन में, मेरे लिए तेरी चाहत की धूप बची है।

उजड़े का पुनर्वास, बहार में रंग का पुनर्स्थापन होता है,
इंसान के कर्म के चयन से, इश्क़ का अधिमान होता है।

सिर्फ़ मनोनयन से अधिकार नहीं मिलता चाहत बोने का,
रंग छूटे चाहतों का,अंदेशा अतिरेक हो रहे सब खोने का।

चाहतों के रंग हज़ार, प्यार की बह रही लोमहर्षक बयार,
तुझे सोचने मात्र से, शहर-ए-क़ल्ब में आई मिलन-शरार।

फरियाद है मेरी अपनी रब से, चाहतों के रंग की जद से,
'शौक़' में चाहतों के रंग का आर्दुभाव,है रानी की मद से।

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30 APR AT 15:18

देखकर सुर्ख गाल शर्म से दहक उठा मेरा गुलाब
उतार रुख़ से नकाब अधर लगा चूम लूँ तेरा शबाब

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30 APR AT 13:50

अगर तू मेरा हो वापस लौट आए,यकीन है आने पर
जानम यकीनन हर दिन खुशियों से महक जाएगा।
एकबार अपनी गर्म साँस से भिगो जो मुझे नहला दो,
मेरा दावा है तेरा मन फिर से इश्क़ में बहक जाएगा।

(सम्पूर्ण रचना अनुशीर्षक में प्रणयरत है)

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27 APR AT 21:13

दो लफ़्ज़ों की परवाह ऐसे मुकाम तक ले आई है,
हर तरफ देख लिया, आगे कुआँ तो पीछे खाई है।

फूल में महक़ार,मेरी माशूका के बदन की समाई है,
लिली सी ख़ूबसूरती की तलब,मौत बनकर आई है।

नज़र की दिल की दौलत, उसे ख़्वाहिश दूसरी है,
जो नफ़रत पालते, उनके दिल रिसती आशनाई है।

अंदेशा था अब की बार बहार,लूटेगी दिल का करार,
बैरी संग मिलकर तुमने, मारने की साज़िश रचाई है।

मेहँदी भी क्या सूर्ख लहू सी, रची रक़ीब के पाणि में,
एकल मोहब्बत ने आज फिर, रूह मेरी सुलगाई है।

दो लफ़्ज़ों में सुनाई जो,तेरी कहानी की बेवफ़ाई मैंने,
जीने की आरजू नहीं रही,बस मौत सी वफ़ा निभाई है।

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27 APR AT 16:22

कम नहीं जहान में प्यार, हर कोई तेरा तलबगार,
वो दीगर बात है मालामाल होकर भी मेरा रहा नहीं।

मचलना फ़ितरत है रंगबिरंगी तितली की,
हर फूल की चाहत उसे, एक से वास्ता रहा नहीं।

मुझे तेरी नफ़रत थोक के भाव मिलती रही है
शुरुआत से ही मुझसे प्यार औरों जितना रहा नहीं।

तुम बहती रही अनिल बन कर इत्त-उत्त सदा से,
मैं एकल तेरा रहा, मगर तू बहे बिना रहा नहीं।

तुम भूल गई एकांत पलों के सहवास की याद,
तुझे दूजों के सहलाव की आदत कभी मेरा रहा नहीं।

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27 APR AT 15:57

तेरी चाहत का हुआ ये असर है,
पत्तों से जुदा दिल का शज़र है
जिसके इश्क़ में गुज़ारी हयात
बेरहम मुझसे ही हुई बेनज़र है

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27 APR AT 15:31

तेरी नवाजिश में झुका सिर
तेरे इश्क़ में फ़ना होने को।
तुझे यकीन नहीं,जीना क्यों
तैयार नहीं तू सगा होने को।
अगर लौट आए ऐ हरजाई
फिर राजी मैं ज़िंदा होने को।

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27 APR AT 15:18

सूख गए हैं तेरे दिए तमाम सुर्ख गुलाब
मगर उनमें तेरी देह की महक अब भी है।

मुझे अब मयस्सर होता नहीं तेरा शबाब,
ग़ैर की बाँहों मचलती हररोज अब भी है।

दौलत नहीं, शोहरत भी नहीं रही बाकी,
आँखों में तेरे दीद की अक़ीदत अब भी है।

तेरी याद में चाँद जलता है, रोज़ घटता है,
मेरी चाँदनी तुझको तरसे अंधेरी शब भी है।

ख़ल्वत में करते जो इबादत तेरी ही है,
तेरे सान्निध्य को मचलता अब रब भी है।

अपने फ़ासलों में भी करीब ही पाया है,
मैंने आँख तलब से की बंद जब भी है।

तुझे खोने का ग़म मयस्सर मुझे हासिल,
मगर तुझे याद कर रोते बाकी सब भी हैं।

मुझे कोई हक न रहा, तेरे जाने के बाद
क्या तेरे घर छोड़ जाने का सबब भी है।

पलटकर देखती तो अहसास होता तुझे,
मेरा मयार तेरे लिए सदा ही गजब भी है

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27 APR AT 14:38

तेरे इश्क़ के अलावा दिल की हसीन मन्नत क्या होगी
तेरे आगोश में मौत जो आ जाए तो जन्नत क्या होगी

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