फूल तो मुरझा जाते है पर ये बच्चें नहीं मुरझा पाते है
दूसरे दिन फिर फूलों से ज़्यादा ये खिले नज़र आते है
फूलों का दर्द ये फूल से बच्चें ही समझ सकते है
काँटों के बीच रहकर भी मुस्कुराना नहीं भूल पाते है
नन्हें नन्हें क़दमों ने चलना तो अभी अभी सीखा था
रोज़ी रोटी के लिए फूल बेचना वक़्त सीखा जाते है
अभी तो ज़िन्दगी के इम्तेहान में थोड़ा उलझें हुए है
स्कूल जाने की चाह में डूबे दिल को रोज़ समझाते है
ना ख़्वाहिश बड़ी और ना ख़्वाबों का बोझ है आंखों में
छोटी छोटी ख़ुशियाँ समेटकर अपने घर को सजाते है
बचपन तो सिर्फ घर, गली और चौराहे में खो गया है
ज़िम्मेदारी के सामने ज़िद करना जैसे भूल से जाते है
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