सहस्त्र कर्मठ सितारे इस कलयुग में जन्मे,
जाने कितने ही मशहूर हुए और कितने ही चमके,
पर आबाद हुआ वह एक जियाला ,जिसकी जवानी भी दो पल की मेहमान थी,
फना हुआ वह वतन पे काफिर सौपीं जिसे अब आजादी की कमान थी ।
उज्जवल मस्तक तेज धारी ,
आंखों में इरादे लेकर आया था,
उम्मीदों की शिला पर चढ़कर ,
वह आजादी की नीव बिछाने आया था ।
पौराणिक और नूतन ग्रंथों का ज्ञाता,
कुछ बहरों को सुनना सिखा रहा था,
वह सजी अदालत की महफिल में बम गिराकर ,
कुछ बर्बर फिरंगीओं की समाधि सजा रहा था ।
विध्वंसक वीर बलशाली सिख,
अंगारों को जला सिखा रहा था,
सवा सौ दिन की भूख जुटाकर,
सहनशीलता का पाठ पढ़ा रहा था।
भगत ,बिस्मिल ,बोस ,आजाद जिनका धर्म भी क्रांति है
यह पाक पुनीत सांसे जाने कितनों की समाधि है,
प्रफुल्लित होगा हर एक अभीत जब जब यह तिरंगा लहराएगा,
आबाद रहेगा वतन हमारा जब तक यह वतनपरस्ती के नग्मे गाएगा।
ऐ मेरे स्वावलंबी स्वदेश की संतानों,
प्रकाश जरा इस कवि की गुहार पर डालो
व्यर्थ ना करना इस कुर्बानी को जो तुम्हें मुफ्त में आजादी थमा गया,
अपनी हर धड़कन में बसा लो इस नाम को जो तुम्हें कर्ज में जवानी सौंप गया ।— % &
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