abhishek singh   (रक्त स्याही (अभिषेक))
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चलते चलते हम कहानी बन गए, अब बस उस पन्ने की तलाश हैं जो मेरी किताब बन सके।
Joined 28 September 2018


चलते चलते हम कहानी बन गए, अब बस उस पन्ने की तलाश हैं जो मेरी किताब बन सके।
Joined 28 September 2018
20 NOV 2023 AT 3:10

!!"काश"!!

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29 OCT 2023 AT 23:17

सूरज की रोशनी,
टिक टिक चलती वक्त की चाल,
बेसुध है, होश नही,

जिंदा है या बेजान है,
रोज़मर्रा की दौड़ में,
एक ही चाल रोज़ की,
और खुद की कोई खोज नही,

रात के रास्ते में,
सूरज की रोशनी,
जिंदगी की दौड़ में,
सब बेसुध है, होश नही।।

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19 AUG 2023 AT 0:21

ना रथ ना पथ, ना अश्व ना मेघ है,
तपती धूप, और जीवन का वेग हैं,
पैरो के नीचे खड़ाऊ नहीं है,
कंकर और पत्थर और कांटे अनेक है,
राह बनाना है, आगे ही जाना है,
पीछे मुड़ना नही, मंजिल सिर्फ एक है,

कल की चोट से आज समझाना है,
उसके हिसाब से राह बनाना है,
कितना भी ऊंचा हो, चढ़ते ही जाना है,
मंज़िल की राह तक जीवन ये शेष है,
वक्त का पहिया ये हमसे भी तेज है।।

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31 JUL 2023 AT 0:23

कहा था मुझे,
तुमने ढूंढा मुझे, तो जिंदगी तुम,
ये पता था मुझे,
आईने देख के अब मुस्कुराना ही पड़ेगा,
वास्ता अब वफ़ा का मुझे,

ज़िंदगी ढूंढ लेगी मुझे,
ये पता था मुझे।।

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30 JUL 2023 AT 23:21

आज बादलों में कहीं गुम है,
मेघ बरस रहे हैं,
धरा पे बरसात की धूम है,

सारे नज़ारे, बेबस है, तर है,
भीगते बदन, पूरे ही सुन्न है,

चाँद गुमसुम है,
आज बादलों में कहीं गुम है।।

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30 JUL 2023 AT 1:32

की क्या खता है हो गई,
खुद की तस्वीर ही,
आईने से खो गई,

क्यों खड़े है आज भी यूं इंतज़ार में,
यूं खड़े खड़े,
क्यों आरज़ू है खो गई,

ज़िंदगी भरी पड़ी है इम्तेहान से,
शब्द है भरे पड़े,
क्यों ये ज़ुबान है खो गई,

सोचते है हम,
की क्या खता है हो गई,
खुद की तस्वीर ही क्यों,
आईने से खो गई।।।

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21 MAY 2021 AT 16:49

कुछ ज़ोर हर पल इस दिमाग पे है,
हा ज़ुबान पे नही, वो हर बात पे है,

हा हस्ता रहता हु हर हार पे भी अपनी,
गुस्सा खुद पे नही, ये हालात पे है,

शायद रोता नही मै खुल कर कभी भी,
काबू खुद पे नही, जज़्बात पे है,

यहां हर पल दिल में एक जंग छिड़ी रहती है,
जीतना दुनिया से नही, अपने आप से है,

हा हर मंज़िल पाने का इरादा रखता हूं,
संग सबकी खुशी चाहता हूं मैं,
मतलब ऊंचा उठाने से नही,
अपनो के साथ से है,

हा.....

कुछ ज़ोर हर पल इस दिमाग पे है,
हा ज़ुबान पे नही, वो हर बात पे है।।

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16 MAY 2021 AT 21:06

व्यक्तिगत सोच के कुछ व्यक्तिगत परिणाम है,
जिन्हे फरक पड़ रहा है ज़्यादा,
वो सभी लोग तो आम है,
कुछ खास पाने को खास बनना पड़ता है,
पर आम से खास बनाने वाला रास्ता ही जाम है,
कुछ खुदगर्ज हो चले, कुछ में मर गया इंसान है,
कभी बाज़ार भरा करते थे,
आज भरा हुआ कब्रिस्तान है,

बस व्यक्तिगत सोच के कुछ व्यक्तिगत परिणाम है,
जिन्हे फरक पड़ता है वो बस आम इंसान है।।

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16 MAY 2021 AT 20:47

वो आंधियों में बैठ कर,
आराम से मुस्कुरा रहा था,
वो उस तूफान के बीच में,
आंखे मूंद के गुनगुना रहा था,
एक बवंडर उसके अंदर भी चल रहा था,
वो ऊपरवाले से उसका हिसाब किए जा रहा था।।

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29 APR 2021 AT 23:40

एक बार फिर,
बिन कुछ कहे,
ये हम सब को समझाएगा,
ये वक्त है साहब,
रुकेगा नहीं,
ये भी गुज़र जाएगा।।

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