बड़ी विचित्र विडंबना मे रहता हु आज कल मैं,
बस सोचता रहता हूँ की ये हमारे समाज को
हो क्या गया है, जिधर देखो उधर करवाहट,
जिधर देखो उधर क्लेश।
यार ऐसा नही था हमारा समाज सब लोग सुख
चैन से रहते थे और सभी लोगों के दिल मे
प्रशंनता रहती थी। पर अब ऐसा नही है,
और यही मै सोचता रहता हूँ।
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