एक एहसास होता है
जब दिल मुस्कुराने लगता है
हाथों में एक छुअन ठहर जाती है
आँखों में एक तस्वीर बनी रहती है
न होकर भी तुम्हें नज़र आता है
वो शख़्स
तुम्हें जिससे मोहब्बत है।
वो शख़्स जब क़रीब हो
तो तुम्हें ज़िंदगी का एहसास रहता है
उससे दूरी अधूरेपन से वाक़िफ़ कराती है
भीड़ में अकेले, बहस में ख़ामोश
बस एक चहरे, आवाज़ का ही इंतज़ार
जानते हुए कि तुम्हारी मोहब्बत में
कितने मसले रहे हैं
तुम्हें इस शख़्स में मंज़िल नज़र आती है
ये जानते हुए भी कि रास्ता आसान तो नहीं
तुम नंगे पाँव ही मदहोश निकल पड़ते हो।
ये सब किताबी मायने, क़ायदे
कोरे पन्नों पर रखे शब्द ही तो हैं
जिन्हें झुठला कर, फुसला कर
उल्फ़त को आफ़त की तश्बीह देकर
तुम्हें पागल कहा जाता है
पर तुम तो शादमाँ राही हो
मुक़ाबिल हर एहसास से
इन शब्दों के, इन लफ़्ज़ों के
नक़्श उभर कर यूं आते हैं कि
बनती कुछ ऐसी एक तस्वीर सी है
और तुम्हें नज़र में आता है
वो शख़्स
तुम्हें जिससे मोहब्बत है ।
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