हमारे इश्क़ का कोई मकाम नही है, सच है उसका दिल हमारा कद्रदान नहीं है, और तुम कहते हो उसे दिल से निकालो, गालिब! मालिक है वो इसका, कोई किरायेदार नहीं है।
इश्क की गली अब मुझे जाना नहीं, कैसा है वो, अब कोई मुझे बताना नहीं, बड़ी हसरत है उस दिन की मुझे, जब वो कहे, कि ये मैं हूं, और मैं कहूं "जी कौन, पहचाना नहीं।"